मराठा शासन / chhattisgarh mein maratha shasan

मराठा शासन / cg chhattisgarh mein maratha shasan


chhattisgarh mein maratha shasan


छत्तीसगढ़ का आधुनिक इतिहास छत्तीसगढ़ में मराठा आक्रमण एवं कल्चुरियों के पतन के साथ प्रारम्भ होता है। 1741ई. में नागपुर के भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने छत्तीसगढ़ में आक्रमण कर इस क्षेत्र में विजय प्राप्त कर रघुनाथ सिंह को शासन प्रतिनिधि नियुक्त किया। इसी प्रकार रायपुर शाखा के हैहय वंशी शासक अमरसिंह को भी शासक से पृथक कर भोंसले शासन साम्राज्य में मिला लिया।छत्तीसगढ़ में मराठा शासन को चार चरणों में बाँट सकते है।
  • प्रत्यक्ष भोंसला शासन (1758-1887 ई.)
  • सूबा शासन(1787-1818 ई.)
  • ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन (1818-1830 ई.)
  • पुनः भोंसला शासन(1830-1854 ई.)
  • प्रत्यक्ष भोंसला शासन -

    14 फरवरी 1755 को नागपुर के साम्राज्यवादी प्रशासक रघुजी प्रथम की मृत्यु हो गई। तत्पश्चात् उसके पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार का संघर्ष छिड़ गया किंतु पेशवा के हस्तक्षेप के कारण उनके माध्यम उत्तराधिकार संघर्ष पर विराम लग पाया और नागपुर में भोंसला साम्राज्य का समझौते के अनुरूप विभाजन हुआ।

    इस विभाजन में संपूर्ण नागपुर साम्राज्य को निम्नलिखित चार हिस्सों में बांट दिया गया -

  1. नागपुर का वारिस बड़े पुत्र जानो जी को बनाया गया।
  2. चाँदा का वारिस मूधोजी जी को बनाया गया।
  3. बरार का वारिस साबाजी को बनाया गया।
  4. अधिकृत छत्तीसगढ़ परिक्षेत्र का शासन कनिष्ठ पुत्र बिम्बाजी को सौंपा गया।

    1) बिम्बाजी भोंसले (1758-87ई.)-

    बिम्बाजी भोंसला रतनपुर राज्य के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के प्रथम मराठा शासक थे। इनकी दो पत्नियाँ उमाबाई और आनंदीबाई थी। इन्होंने रतनपुर को अपनी राजधानी बनाया। इनका शासन काल 1758-1787ई. था।

    प्रमुख कार्य -

    • परगना पद्धति को लागू किये थे।
    • रायपुर व रतनपुर का प्रशासनिक एकीकरण किया था।
    • राजनाँदगाँव व खुज्जी नामक दो जमींदारी का निर्माण था।
    • रतनपुर के रामटेकरी में भव्य राम मंदिर का निर्माण करवाये थे।
    • रायपुर के दूधाधारी मठ का पुनः निर्माण करवाये थे।
    • विजयादशमी पर्व पर स्वर्ण पत्र देने की प्रथा का प्रारंभ करवाये थे।
    • मराठी , उर्दू , गोंडी लिपि प्रारंभ करवाया।
    • 'छत्तीसगढ़ राज्य' की संज्ञा दी।
    • नागपुर से कोई संपर्क नहीं रखते हुए स्वतंत्र शासक की तरह शासन किया था।
    • 7 दिसम्बर, 1187ई. को बिम्बाजी की मृत्यु हुई।
    • पत्नी उमाबाई इनके साथ सती हुई थी।

    व्यंकोजी भोंसले (1787- 1815 ई.)-

    बिम्बाजी के बाद व्यंकोजी भोंसले ने शासन किया। इसके शासन काल में छत्तीसगढ़ का आर्थिक , सामाजिक एवं राजनैतिक पतन हुआ।
    • इसी के समय छत्तीसगढ़ में 'सूबेदारी पद्धति 'अथवा 'सूबा शासन' की शुरुआत हुई।
    • 'धुरंधर' की उपाधि के साथ छत्तीसगढ़ की प्रशासनिक जिम्मेदारी इनको सौंपी गई।
    • मराठा इतिहास में छत्तीसगढ़ को व्यंकोजी का जागीर कहा गया है।
    • 1790ई. में यूरोपीय यात्री फॉरेस्टर छत्तीसगढ़ आया था।

    सूबा शासन (1787-1818ई.)-

    सूबा शासन के अंतर्गत छत्तीसगढ़ को  नागपुर रियासत के अधीन एक सूबा माना गया। नीलामी के आधार पर सूबेदारों की अस्थायी नियुक्ति की जाती थी। इस शासन पद्धति के कारण छत्तीसगढ़ में आर्थिक,सामाजिक एवं राजनैतिक शोषण हुआ।

    सूबेदार -

    1) महिपतराव दिनकर (1787 -90 )-

    विशेष

    • छत्तीसगढ़ के प्रथम सूबेदार नियुक्त हुए।
    • यूरोपीय यात्री 'फॉरेस्टर' का छत्तीसगढ़ में आगमन हुआ।

    2) विट्ठलराव दिनकर (1790 -96)

    • छत्तीसगढ़ का दूसरा सूबेदार।
    • छत्तीसगढ़ में 'परगना पद्धति' का प्रारंभ किया।
    • छत्तीसगढ़ को 27 परगनों में विभाजित किया था।
    • परगने के प्रमुख को 'कमविंसदार' कहलाया था।
    • यूरोपीय यात्री मि. ब्लंट का छत्तीसगढ़ में आगमन हुआ।

    3) भवानी कालू

    • अल्पकालीन सूबेदार

    4) केशव गोविन्द (1779-1808)

    • सर्वाधिक समय तक छत्तीसगढ़ का सूबेदार रहा।
    • यूरोपीय यात्री कोलब्रुक का आगमन हुआ।

    5) बीकाजी गोपाल (1809 -1816)

    • पिण्डारियों का उपद्रव हुआ।
    • व्यंकोजी भोंसले तथा रघुजी द्वितीय की मृत्यु इसी के समय हुई।
    • अंग्रेजों एवं मराठों के बीच सहायक संधि इसी के समय हुआ।

    6) सखाराम हरि

    • अल्पकालीन (3 माह )

    7) सीताराम टांटिया

    • अल्पकालीन (6 माह)

    7) यादवराव दिवाकर (1817 - 1818 )

    • सूबा शासन के दौरान छत्तीसगढ़ का अंतिम सूबेदार

    ब्रिटिश शासन के अधीन मराठा शासन (1818-1830ई.)-

    • वर्ष 1818 में मराठा को अंग्रेजों से 'तृतीय आंग्ला-मराठा' युद्ध में पराजय का सामना करना पड़ा।
    • इसके बाद छत्तीसगढ़ में ब्रिटिश नागपुर संधि के साथ अप्रत्यक्ष रूप से शासन किये।
    • जेनकिंग नागपुर में प्रथम अंग्रेज रेजीडेंट नियुक्त किये गए।
    • रघुजी तृतीय इस समय अल्पवयस्क थे। तब इनकी ओर से अंग्रेजों ने एजेंट बनकर शासन किया। इन एजेंटों को अधीक्षक कहा गया।

    प्रथम ब्रिटिश अधीक्षक - कैप्टन एडमंड (1818)-

    • डोंगरगढ़ के जमींदार के विद्रोह को नियंत्रण में करना इसका प्रमुख कार्य था।

    द्वितीय ब्रिटिश अधीक्षक - कैप्टन एग्न्यू (1818-1825)

    • इसने 1818 में राजधानी रतनपुर से रायपुर को बनाया।
    • 1818 में रायपुर पहली बार ब्रिटिश अधीक्षक का मुख्यालय तथा छत्तीसगढ़ की राजधानी बना।
    • सोनाखान के जमींदार रामराय का विद्रोह 1819 में हुआ था, जोकि मैसन द्वारा गिरफ़्तार किये गए।
    • गेंदसिंह का परलकोट विद्रोह इसी के समय हुआ था।

    छत्तीसगढ़ में नियुक्त अन्य ब्रिटिश अधीक्षक -

    कैप्टन हंटर

    सैंडिस(1825 से 1828ई. तक)

    • छत्तीसगढ़ में अंग्रेजी वर्ष को मान्यता मिला।
    • कामकाज अंग्रेजी में होना प्रारंभ हुआ।
    • छत्तीसगढ़ में डाक व तार का विकास कराया।
    • लोरमी व तरेंगा नामक दो ताहूतदारी बनायी।

    विलकिंसन (1825 से 1830ई. तक)

    क्राफर्ड - जिलेदार नियुक्त किया।

    पुनः भोंसला शासन -

शासक : रघुजी तृतीय -

इस समय छत्तीसगढ़ में नियुक्त अधिकारी जिलेदार कहलाता था।

प्रथम जिलेदार -कृष्णा राव अप्पा

अंतिम जिलेदार - गोपाल राव

  • 11 दिसम्बर 1853 को रघुजी तृतीय की मृत्यु हो गई।
  • परिणामस्वरूप डलहौजी ने 'गोद प्रथा निषेध ' की नीति के तहत नागपुर रियासत का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय किया। इसी के साथ छत्तीसगढ़ भी ब्रिटिश शासन के अंतर्गत आ गया।
  • इस प्रकार मराठा शासन का अंत हो गया।

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