Chhattisgarh ki lok shilpakala -
छत्तीसगढ़ की लोक शिल्पकला ( Folk Arts of Chhattisgarh) -
धातु शिल्पकला -
घड़वा शिल्पकला -
- प्रयुक्त सामग्री - पीतल एवं कांसा
- पद्धति - भ्रष्ट मोम पद्धति का प्रयोग होता है।
- कांस्य मूर्ति का निर्माण होता है।
1) घड़वा शिल्पकला - बस्तर , कोंडागांव छत्तीसगढ़
2) झारा शिल्पकला - रायगढ़
3) मलार शिल्पकला - सरगुजा
ढोकला शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
- शिल्प केंद्र - कोंडागांव
- शिल्पकार - सुखचंद, श्री पदुम, मनिकराम घड़वा, जयदेव बघेल।
- अंतिम रूप से निर्मित आकृति को पीतल धातु से ठोस स्वरूप प्रदान किया जाता है।
- बेल धातु ढोकला शिल्प से संबंधित है।
मिट्टी शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
रजवार भित्ति शिल्प छत्तीसगढ़ -
- शिल्पकार - क्षितरूराम, देवनाथ।
- अंचल - सरगुजा
- प्राकृतिक रंगों से घर की दीवार एवं खिड़कियों में सुंदर कलाकृति की जाती है।
काष्ठ शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
छत्तीसगढ़ वन संपदा से समृद्ध राज्य है इस कारण विभिन्न जनजातियों द्वारा विभिन्न प्रकार के शिल्पकला कार्य किए जाते हैं। जैसे - कलात्मक मूर्तियां ,नृत्यरत मूर्तियां, कलात्मक मृतक स्तम्भ आदि।
- काष्ट कला के लिए मुरिया जनजाति प्रसिद्ध है।
पत्ता शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
इस शिल्प कला के अंतर्गत सामान्यतः छिंद पत्ते से चटाई, झाडू, खिलौने, पेन स्टैंड, मौर जबकि बस्तर क्षेत्र में साल के पत्ते से दोना-पत्तल आदि का निर्माण किया जाता है।
कंघी शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
शिल्प कला के अंतर्गत लकड़ी के अत्यंत कलात्मक कंघियों का निर्माण किया जाता है जो बस्तर अंचल में मोरिया जनजाति द्वारा बनाई जाती है।
प्रस्तर शिल्पकला छत्तीसगढ़ -
इस शिल्पकला में छिनी-हथौड़ा एवं विभिन्न उपकरणों से पत्थरों का पर चित्र उकेरा जाता है। इस शिल्पकला में बस्तर के चित्रकूट क्षेत्र की विशेष प्रसिद्धि है।
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