छत्तीसगढ़ के देशी रियासत -
'अधिमिलन की नीति' पर हस्ताक्षर -
भारत सरकार द्वारा रियासतों को भारत संघ में विलय हेतु अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर करने हेतु प्रारूप तैयार किया गया। जिसके अनुसार रियासतों को विदेशी मामले रक्षा व यातायात तीन महत्वपूर्ण विषयों पर भारत संघ में अधिमिलन स्वीकार करना था और इस प्रवेश अनुबंध पत्र में भारतीय संघ में प्रवेश के इच्छुक रियासतों को हस्ताक्षर करना था।
छत्तीसगढ़ में अभी मिलन पत्र पर हस्ताक्षर हेतु 1 अगस्त 1947 को राजकुमार कॉलेज रायपुर में रियासतों के प्रधानों की बैठक हुई। जिसमें बस्तर रियासत के प्रमुख शामिल नहीं हुए। 15 अगस्त 1947 को भारतीय रियासत विभाग द्वारा छत्तीसगढ़ के 14 सामंतीय रियासतों को प्रवेश अनुबंध पत्र एवं यथास्थिति समझौते की प्रति डाक द्वारा भेजी गई । छत्तीसगढ़ की रियासतों में खैरागढ़ पहेली रियासत की जिसने भारत संघ में प्रवेश की स्वीकृति प्रदान की छत्तीसगढ़ की सभी 14 रियासतों ने अनुबंध पत्र पर हस्ताक्षर कर भारत संघ में प्रवेश ले लिया था। छत्तीसगढ़ की रियासतों में निम्नलिखित तिथि क्रम में अधिमिलन पत्र पर हस्ताक्षर किया गया जिनका विवरण निम्नानुसार है-
- 05 अगस्त 1947 - खैरागढ़ रियासत
- 07 अगस्त 1947- कोरिया रियासत
- 09 अगस्त 1947 - सरगुजा रियासत
- 11 अगस्त 1947 - रायगढ़ रियासत, कांकेर रियासत
- 15 अगस्त 1947 के पूर्व - चांगभाखर रियासत, सारंगढ़ रियासत, कवर्धा रियासत, छुईखदान रियासत, उदयपुर रियासत, बस्तर रियासत, सक्ती रियासत
- 22 अगस्त 1947 - नांदगांव रियासत
- 01 सितम्बर 1947 - जशपुर रियासत
रियासतों का जिलों में समावेशन -
- बस्तर रियासत - बस्तर
- कांकेर रियासत - कांकेर
- सारंगढ़, रायगढ़ , उदयपुर रियासत - रायगढ़
- जशपुर रियासत - जशपुर
- चांगभाखर व कोरिया रियासत - कोरिया
- सरगुजा रियासत - सरगुजा
- छुईखदान, नांदगांव, खैरागढ़ रियासत - राजनांदगांव
- कवर्धा रियासत - कवर्धा
छत्तीसगढ़ में रियासतों का विवरण-
1) सरगुजा रियासत -
- प्राचीन नाम - डांडोर
- क्षेत्रफल - 6055 वर्ग मील
- राजधानी - अम्बिकापुर
- वंश - रक्सेल राजपूत राजवंश
- संस्थापक - विष्णुप्रताप सिंह
प्रमुख शासक -
1) शिवराज सिंह -
- इस रियासत का क्रमबद्ध इतिहास इन्हीं के शासनकाल से प्रारंभ होता है।
- इन के शासनकाल में पहली बार मराठों का आक्रमण सरगुजा राज्य पर हुआ था।
- इन्होंने मराठों की अधीनता स्वीकार कर वार्षिक टकोली देने का वचन दिया था
2) अजीत सिंह -
- इन के शासनकाल में ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध 1792 ई. में पलामू का विद्रोह हुआ था।
- इन के शासनकाल में चारो ओर शांति स्थापित हुई थी।
3) लालसंग्राम सिंह -
- इन्हें कर्नल जोन्स ने परास्त कर सरगुजा रियासत से निकाल दिया।
- यह अजीत सिंह का भाई था तथा अजीत की विधवा रानी की हत्या कर राजगद्दी प्राप्त किया था।
- राज्य की अधिकांश जनता ने अंग्रेजों से अनुरोध किया कि संग्राम सिंह को रियासत से निकाल दिया जाए।
4) बलभद्र सिंह -
- इनके शासनकाल में अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित हुआ।
- चतुर्थ मराठा युद्ध में हुए सीताबर्डी की संधि के तहत सरगुजा रियासत पूर्ण रूप से अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया।
- बलभद्र सिंह एक योग्य शासक नहीं था। इस कारण अंग्रेजों ने दीवान की नियुक्ति की थी।
5) अमर सिंह -
- अंग्रेजों के सहयोग से गद्दी प्राप्त किया था।
- 6) इंद्रजीत सिंह-
- अमर सिंह का उत्तराधिकारी था परंतु विक्षिप्त होने के कारण शासन नहीं चला पाया।
7) रघुनाथ शरण सिंह -
- सन 1895 में लॉर्ड एल्गिन ने इन्हें महाराजा बहादुर की उपाधि से विभूषित किया।
- के पश्चात सन 1917 में उनके पुत्र रामानुज शरण सिंह का राज्याभिषेक हुआ।
8) रामानुज शरण सिंहदेव -
- अंग्रेजों की प्रथम विश्वयुद्ध में सहायता करने के कारण रामानुज शरण सिंह को अंग्रेजों ने कमांडर ऑफ ब्रिटिश इम्पीरर की उपाधि से विभूषित किया।
- नई सनद प्राप्ति पश्चात 1918 ई. में इन्हें खानदानी महाराजा की उपाधि उपाधि प्रदान की गई।
- इमली के शासनकाल में किसान उरांव विद्रोह हुआ था।
- इन्होंने भारत संघ के संविलियन पत्र पर हस्ताक्षर किए थे।
उदयपुर रियासत -
प्रमुख शासक
1) कल्याण सिंह -
- उदयपुर रियासत अंग्रेजों के प्रभाव में आने के समय यहां का जागीर प्रमुख कल्याण सिंह था।
- लखनऊ डलहौजी ने कल्याण सिंह, शिवराज सिंह एवं धीरज सिंह को नरबलि अपराधी बनाकर रांची जेल में बंद कर दिया।
2) शिवराज सिंह -
- कालांतर में कल्याण सिंह और धीरज सिंह की मृत्यु हो गई तत्पश्चात शिवराज सिंह जागीरदारी के स्वामी बने।
- 1859 में ब्रिटिश सरकार ने शिवराज सिंह को रायगढ़ के राजा देवनाथ सिंह की मदद से पकड़कर उन पर मुकदमा चलाया और काला पानी की सजा दी गई।
3) लालविंधेश्वरी प्रसाद सिंहदेव -
- ब्रिटिश सरकार ने सरगुजा रियासत के राजा अमर सिंह के पुत्र लालविंधेश्वरी प्रसाद सिंहदेव को उदयपुर जागीर का स्वामी बना दिया।
- लाल विंधेश्वरी प्रसाद यादव की अंग्रेज स्वामी भक्त के कारण अंग्रेज सरकार ने राजा बहादुर व सितारे हिंद की उपाधि से इन्हें भी घोषित किया था।
4) धर्मजीत सिंह -
- के पश्चात धर्मजीत सिंह गद्दी पर आसीन हुए एवं उनके द्वारा रबकोन नामक गांव में राजधानी बनाया गया और उसका नाम पर परिवर्तित करके धर्मजयगढ़ कर दिया।
- इस रियासत का प्रथम शासक था जिसने राजा की विशिष्ट उपाधि प्राप्त की थी।
5) चंद्रशेखर प्रताप सिंहदेव -
- धर्मजीत सिंह के उत्तराधिकारी थे जो अल्फा आयु होने के कारण राजकाज चलाने में अक्षम थे अतएव राजकार्य का दायित्व ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया।
- यह अध्ययन के लिए रायपुर स्थित राजकुमार कॉलेज गए थे।
- 1912 ई. में ब्रिटिश सरकार ने पुनः राजकाज चंद्रशेखर प्रताप सिंह देव को सौंप दिया।
6) चंद्रचूड़ प्रताप सिंह -
- यह 5 वर्ष की आयु में राजगद्दी पर आसीन हुए थे।
- बालिक होने की पहचान इन्होंने इस राज्य की सत्ता का संचालन किया।
- इन के शासनकाल में उदयपुर रियासत भारतीय संघ में शामिल हो गया।
- इन्होंने भारत संघ के संविलियन पत्र पर हस्ताक्षर किया था।
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