छत्तीसगढ़ में नलवंश और शरभपुरीय वंश का इतिहास

छत्तीसगढ़ में नलवंश और शरभपुरीय वंश के इतिहास -

छत्तीसगढ़ में नल वंश का इतिहास-

नल - नाग वंश का राजधानी कोरापुट (ओड़िशा ) था।ओड़गा (जिला - बस्तर) से प्राप्त स्वर्ण मुद्राएँ यह प्रमाणित करती हैं कि बस्तर में कोरापुट के नलवंशीय शासकों का शासन विद्यमान था।
इस वंश के संस्थापक शिशुक था। जिसने 290-330 ई. तक शासन किया था। इसके बाद इसका पुत्र व्याग्ररज ने 330-370 तक शासन किया। व्याग्रराज को समुद्र- गुप्त ने पराजित किया था जिसका प्रमाण हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में मिलता है।
व्याग्ररज के बाद उसका पुत्र वृषराज ने 370-400ई. तक शासन किया।

जानकारी के स्त्रोत -

  • ऋद्धिपुर ताम्रपत्र - अमरावती, महाराष्ट्र (भवदत्त वर्मन )
  • केसरीबेड़ा - ओड़िशा (अर्थपति भट्टारक)
  • पोड़ागढ़ अभिलेख - जैपुर, ओड़िशा (स्कंदवर्मन)
  • राजिम शिलालेख - राजिम, छत्तीसगढ़ (विलासतुंग)
  • पड़ियापाथर - ओड़िशा (भीमसेन)
  • कुलिया अभिलेख - बालोद, छत्तीसगढ़ (स्तम्भराज)


शासक विशेष 
शिशुक(290 - 330 ई.) इस वंश का संस्थापक 
व्याग्रराज (330 - 370 ई.)समुद्रगुप्त ने दक्षिणापथ विजय अभियान के दौरान हराया था। (हरिषेण कृत प्रयाग प्रशस्ति )
वृषराज (370 - 400 ई.)
वराहराज (400 - 435 ई.)
  • वास्तविक संस्थापक माना जाता है। 
  • वराहराज की 29 स्वर्ण मुद्राएँ कोंडागाँव के आडेंगा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। 
भवदत्त वर्मन (435 - 465 ई.)वाकाटक नरेश नरेन्द्रसेन पर आक्रमण कर नंदिवर्धन को तहस -नहस कर दिया 
अर्थपति भट्टारक (465 - 480 ई.)वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन ने आक्रमण कर राजधानी पुष्करी को तहस -नहस कर दिया। 
स्कंदवर्मन (480 - 515 ई.)पुष्करी को फिर से बसाया। (पोढ़ागढ़ अभिलेख के अनुसार )
स्तंभराज (515 - 550 ई.)दुर्ग जिले के कुलिया से प्राप्त लेख में स्कंदवर्मन के बाद स्तंभराज व नंदराज का वर्णन 
नंदराज (550 - 585 ई.)दुर्ग जिले के कुलिया से प्राप्त लेख में स्कंदवर्मन के बाद स्तंभराज व नंदराज का वर्णन 
पृथ्वीराज (585 - 625 ई.)शिव के विरुपाक्ष रूप का पुजारी था। 
वीरूपक्ष ( 625-660 ई.)बिलासतुंग के पिता 
बिलासतुंग (660-700 ई.)
  • 700-740 ई. (राजिम अभिलेख से )
  • विष्णु का उपासक था।
  • राजिम में राजीव लोचन मंदिर बनवाया। (शैली गुप्त शासकों जैसी )
  • पाण्डुवंशियों को पराजित किया था। 
पृथ्वीव्याघ्र (700-740ई.)पल्लव नरेश नंदिवर्धन के उदयेन्दिरम शिलालेख में वर्णित है। 
भीमसेन देव (900-955ई.)शैव मत को मानता था। 
नरेन्द्र थबल (935- 960ई.)अंतिम नल शासक था। 

अन्य तथ्य -

  • पुलकेशिन द्वितीय के एहोल प्रशस्ति में नल वंश का वर्णन है। 
  • सोने के सिक्के चलाए थे - वराहराज , भवदत्त , अर्थपति। 
  • कोंडागांव के समीप नलवाड़ी ग्राम नलवंश से संबंधित माना जाता है। 
  • लेखों से अधिकारी वर्ग का उल्लेख  मिलता है। 

आक्रमण -

  • गुप्त वंश ,वाकाटक वंशी एवं  चालुक्य वंशी के साथ संघर्ष 
  • कल्चुरियों द्वारा समाप्ति का उल्लेख मिलता है। 

छत्तीसगढ़ में शरभपुरीय वंश का इतिहास -

  • राजधानी - शरभपुर ( संबलपुर )
  • राज्य विस्तार - उत्तरी - पूर्वी क्षेत्र , मल्हार , सारंगढ़ , रायगढ़ ,संबलपुर 
  • संस्थापक - शरभराज (5 वीं शताब्दी के अंत में  )
  • इसे अमरार्य कुल भी कहा जाता था। 
  • इस वंश के ताम्रपत्र आरंग व मल्हार में मिले है। 
  • श्रीपुर (सिरपुर ) उप -राजधानी थी। 
  • शरभपुरीय वंशीय शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे। 
  • इस काल के ताम्रपत्रों में सन या सवत न लिखे होने के कारण इस काल  के सही समय  का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। 
  • शरभपुरिओं ने ताम्रपत्रों में अपने को 'परमभागवत ' लिखा है। 
  • शरभपुरियों की राजमुद्रा 'गजलक्ष्मी ' थी , जो ताम्रपत्रों व् सिक्को में उत्कीर्ण है। 
शासक विशेष 
नरेंद्र 
  • शरभराज का उत्तराधिकारी। 
  • इसके नाम से कुरुद एवं पिपरुदुला ताम्रपत्र मिले है।  

प्रसन्नमात्र 

  • सर्वाधिक प्रतापी (विष्णु भक्त )
  • निडिला नदी (लीलागर ) के किनारे प्रसन्नपुर शहर (मल्हार ) को बसाया। 
  • गरूड़ ,शंख ,चक्रयुक्त सोने के सिक्के चलवाये। 
  • इसके दो बेटे थे - जयराज व दुर्गराज मानमात्र 
  • जयराज शासक बना , परन्तु जल्द ही मृत्यु के कारण से दुर्गराज मानमात्र ने शासन किया। 
 प्रवरराज
  • दुर्गराज का उत्तराधिकारी बना. 
  • सिरपुर को नई राजधानी बनाया 
सुदेवराज 
  • प्रवरराज का उत्तराधिकारी। 
  • कौवाताल अभिलेख (महासमुंद ) में इसके सामंत इन्द्रबल का वर्णन है। 
प्रवरराज 
  • शरभ वंश का अंतिम शासक 
  • सुदेवराज के सामंत इन्द्रबल ने प्रवरराज द्वितीय को मर कर पाण्डु वंश की नींव डाली। (कौवाताल अभिलेख , महासमुंद )

नोट - भानुगुप्त के 'एरण अभिलेख ' में भी इस वंश के शासकों का उल्लेख है।