सविनय अवज्ञा आंदोलन और छत्तीसगढ़


सविनय अवज्ञा आंदोलन और छत्तीसगढ़ -

सन् 1929 के दौरान गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से 11 सूत्रीय मांग की किन्तु लार्ड इरविन ने मांग को अस्वीकार कर दिया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन (दिसंबर 1929) में इस आंदोलन के प्रस्ताव को पारित किया गया। जिसके तहत् गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती से पैदल यात्रा कर 24 दिन बाद 6 अप्रैल 1930 को दांडी  (खम्भात की खाड़ी ) पहुँच कर नमक कानून को तोड़कर के इस आंदोलन को प्रारंभ किए। छत्तीसगढ़ में भी इस आंदोलन का जिलेवार कई व्यक्तियों ने नेतृत्व किया , जो इस प्रकार हैं -

  छत्तीसगढ़ में आंदोलन का प्रभाव -

पूर्ण स्वराज सप्ताह -

  • अवधि - 6 अप्रैल से 13 अप्रैल 1930 
  • स्थान - रायपुर 
  • नेतृत्व - पं. रविशंकर शुक्ल 
  • कार्ययोजना - राष्ट्रीय सप्ताह के दौरान - धरना देना , बहिष्कार करना , स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग इत्यादि। 

रायपुर में आंदोलन -

नमक कानून तोड़ना -

  • तिथि - 8 अप्रैल 1930 ई.
  • द्वारा - पं. रविशंकर शुक्ल 
  • सहयोगी - ठा. प्यारेलाल सिंह एवं महंत लक्ष्मीनारायण 
  • विशेष - धमतरी में नारायणराव मेघावाले ने नमक कानून तोड़ा 

रायपुर में राजनितिक परिषद् के सम्मेलन -

  • तिथि - 15 अप्रैल 1930 
  • अध्यक्षता - सेठ गोविन्द दास 
  • कार्यक्रम - 15 अप्रैल 1930 को महाकोशल राजनीतिक परिषद् के सम्मेलन में पं. रविशंकर शुक्ल ने हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl)व सोडियम हाइड्रॉक्साइड (NaOH) को मिलाकर नमक बनाया और इस कानून का प्रतिककात्मक रूप से उल्लंघन कर नमक कानून तोड़ा।  इस कार्य में सहयोगी सेठ गोविन्द दास , द्वारका प्रसाद मिश्र , महंत लक्ष्मीनारायण दास व गयाचरण त्रिवेदी थे। 
  • यह सम्मेलन 13 अप्रैल 1930 को होना था किंतु नेहरू जी की गिरफ्तारी के बाद दो दिन विलंब से संपन्न हुआ। इस सम्मेलन को महाकौशल राजनीतिक परिषद् के नाम से जानते हैं। 

कर न दो और पट्टा मत लो आंदोलन -

  • स्थान - रायपुर व बिलासपुर 
  • नेतृत्वकर्ता - ठा. प्यारेलाल सिंह (रायपुर ), गजाधर साव (बिलासपुर )

छत्तीसगढ़ के पांच पाण्डव प्रसिद्ध हुए-

रायपुर में इस आंदोलन को संचालित करने में पांच व्यक्तियों का विशेष योगदान था।  जिन्हे पांच पाण्डव की संज्ञा दी गयी -
  1. धर्मराज युधिष्ठिर- वामानराव लखे
  2. भीम - लक्ष्मी मंहत नारायण दास
  3. अर्जुन - ठाकुर प्यारेलाल सिंह
  4. नकुल - मौलाना अब्दुल रऊफ
  5. सहदेव - शिवदास डागा

धमतरी में आंदोलन -


  • क्रांति कुमार भारतीय ने 08 अगस्त, 1930ई. को टाउन हॉल में तिरंगा फहराया।
  • 31 दिसंबर, 1932 ई. को गांधी चौक में श्री धनश्याम सिंह गुप्त ने तिरंगा झंडा फहराया।

गांधीजी का दूसरी बार छत्तीसगढ़ आगमन -

  • 22 से 28 नवम्बर, 1933 में गांधीजी का छत्तीसगढ़ में दूसरी बार आए थे।
  • उद्देश्य - हरिजन उत्थान
  • गांधीजी के साथ ठक्कर बापा,महादेव देसाई और मीरा बेन भी आए थे।
  • यात्रा - दुर्ग - कुम्हारी- रायपुर - धमतरी - राजिम - रायपुर
  • गांधीजी से पहले पंडित सुंदरलाल शर्मा ने राजीव लोचन मंदिर में ' हरिजन प्रवेश आन्दोलन ' चला रहे थे। इसी से प्रभावित होकर गांधीजी ने पंडित सुंदरलाल शर्मा को अछूतोद्धार में अपना गुरु कहा था ।
  • इसी दौरान रामदयाल तिवारी ने गांधी मीमांसा की रचना की।

छत्तीसगढ़ में प्रथम निर्वाचन 1937

  • प्रांतों में चुनाव वर्ष 1937 में हुआ था।
  • 1935 के अधिनियम के तहत्  1937 में हुए।
  • रायपुर से पंडित रविशंकर शुक्ल, बिलासपुर से ई. राघवेन्द्र राव, दुर्ग से घनश्याम सिंह गुप्त सिन्ह निर्वाचित हुए।
  • छत्तीसगढ़ इस समय मध्य प्रांत एवम् बरार का हिस्सा था ।
  • 04 जुलाई, 1937 को मध्य प्रांत में बी. जी. खरे मंत्रिमंडल का गठन हुआ।
  • मुख्यमंत्री - बी.जी. खरे व शिक्षा मंत्री - पंडित रविशंकर शुक्ल थे।
  • बी. जी. खरे द्वारा त्यागपत्र देने के बाद

  1. 29 जुलाई, 1937 को पंडित रविशंकर शुक्ल ने मध्य प्रांत के मुख्यमंत्री बने।
  2. 1936 में ई.  राघवेन्द्र राव को मध्य प्रांत गवर्नर बनाया गया।
  3. धनश्याम सिंह गुप्त व्यस्थापिका अध्यक्ष थे।

व्यक्तिगत सत्याग्रह -

  • छत्तीसगढ़ में व्यक्तिगत सत्याग्रह 27 नवम्बर 1940ई. को रायपुर में शुरू हुआ।
  • पंडित रविशंकर शुक्ल प्रथम सत्याग्रही थे।इसी वर्ष रायपुर में कांग्रेस भवन का निर्माण हुआ, जिसका उद्घाटन सरदार पटेल किए।

क्रांतिकारी आंदोलन -

रायपुर षडयंत्र केस -

  • यह भारत छोड़ो आंदोलन के समय की प्रमुख घटना है,जिसका नेतृत्व परसराम सोनी ने किया था। 
  • इसमें विस्फोट सामग्री से ब्रिटिश अधिकारी के खिलाफ बड़ी घटना को अंजाम देने की योजना थी।
  • ब्रिटिश मुखबिरी शिवनंदन के कारण इस्पेक्टर नरेंद्र सिंहा ने 15 जुलाई 1942 को परसराम सोनी को गिरफ्तार किया।
  • परसराम सोनी को 7 वर्षों की कठोर कारावास की सजा हुई, बाद में  मुख्यमंत्री पंडित रविशंकर शुक्ल के प्रयास से 26 जुलाई 1946 को रिहा किए गए।

रायपुर डायनामाइट कांड -

  • यह भी भारत छोड़ो आन्दोलन के समय की घटना थी। इसके नेतृत्वकर्ता बिखल नारायण अग्रवाल थे।
  •  इस घटना का मुख्य उद्देश्य बंदियों को छुड़ाने के लिए रायपुर जेल की दीवार को डायनामाइट से उड़ाना था।