गुप्त काल & राजर्षितुल्य वंश

गुप्त काल (319 -550 ई.)-
राजधानी - पाटलीपुत्र 

  • प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख के अनुसार समुद्रगुप्त ने महाकांतर के शासक व्याघ्रराज को पराजित किया था। 
  • 'कोपरा ' नामक स्थान से समुद्रगुप्त की पत्नी रूपादेवी से सम्बंधित कई ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। 
  • दुर्ग जिला के 'बानबरद ' से समुद्रगुप्त, रामगुप्त, तथा चन्द्रगुप्त के 20 सिक्के प्राप्त हुए हैं। 
  • आरंग से कुमारगुप्त का रत्नजड़ित  'मयूर सिक्का ' प्राप्त हुआ है। 
  • जनश्रुति के अनुसार , कालिदास ने 'मेघदूत ' की रचना रामगढ़ की पहाड़ियों में किया था। 
छत्तीसगढ़ सम्बंधित गुप्तवंशीय शासक -
समुद्रगुप्त -

  • महानदी के किनारे पर लम्बे समय तक समुद्रगुप्त की सेना का पड़ाव था, जिस आधार पर महासमुंद जिला का नामकरण माना जाता है। 
  • प्रयाग प्रशस्ति में वाकाटक नरेश महेन्द्रसेन , नलवंशी राजा व्याग्रराज का उल्लेख है। 
  • कोपरा में समुद्रगुप्त के पत्नी रूपादेवी से सम्बंधित साक्ष्य मिले हैं। 
चन्द्रगुप्त द्वितीय -
  • चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ध्रुवस्वामिनी से विवाह कर बेटी प्रभावती का विवाह  वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया। 
  • जब वाकाटक नरेश रुद्रसेन का मृत्यु हुआ तो यह राज्य प्रभावती और उसके बेटों या चन्द्रगुप्त के हाथों में आ गया। 
  • खरसिया  के पास से धनुधारी सिक्का प्राप्त हुआ है। 
कुमारगुप्त -
  • आरंग में कुमारगुप्त का सिक्का प्राप्त हुआ है। 
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य -
  • गुप्त काल में बस्तर को महाकांतर कहा जाता था। 
  • छत्तीसगढ़ को 'दक्षिणापथ ' कहा जाता था। 
  • गुप्त, वाकाटक, और नल वंश तीनों समकालीन थे ,और छत्तीसगढ़ के शासन का कुछ भू - भाग गुप्तों के हाथों में कुछ समय के लिए रहा। 
  • गुप्तकाल के मल्हार एक समृद्धशाली नगर था। मल्हार की मूर्तिकला में गुप्तकालीन विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। यहाँ प्राप्त स्वर्ण मुद्राएँ सभ्यता के प्रतीक हैं। 

राजर्षितुल्य वंश -

  • दक्षिण कोसल क्षेत्र में इस वंश के राज्य करने के विषय में भीमसेन द्वितीय के आरंग ताम्रपत्र से जानकारी मिलती है। 
  • राजधानी - आरंग
  • इस वंश के प्रमुख राजा निम्न है -

  1. शूरा 
  2. भीमसेन प्रथम 
  3. दयित 
  4. दयित द्वितीय 
  5. विभीषण 
  6. भीमसेन द्वितीय 
  • इस वंश को 'शूरा राजवंश ' भी कहा जाता है। 
  • इस वंश की राजमुद्रा ' सिंह ' थी। 
  •  इस वंश के शासकों ने गुप्तों की अधीनता स्वीकार की। 
  • इसका काल 5 वीं से 6 वीं  शताब्दी रहा है।