ब्रिटिश शासन के अंतर्गत प्रमुख विद्रोह एवं क्रांति

ब्रिटिश शासन के अंतर्गत प्रमुख विद्रोह एवं क्रांति -

सोनाखान विद्रोह :-

  • स्थान -सोनाखान (बलौदाबाज़ार )
  • नेतृत्व- वीरनारायण सिंह (सोनाखान के जमींदार )
  •  विद्रोह -अकाल के दौरान सरकार के दमनकारी नीतियाँ 
  • गिरफ़्तार- 02 दिसम्बर 1857 में कैप्टन स्मिथ ने सोनाखान से 
  • कारण -कसडोल के माखनलाल नामक व्यापारी के गोदाम से अनाज लूटकर अकाल पीड़ितों को बाँटना 
  • फाँसी- 10 दिसम्बर, 1957 को रायपुर के जयस्तंभ चौक में 
  • तात्कालिक अधीक्षक -चार्ल्स इलियट 
  • विशेष -वीरनारायण सिंह छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता आंदोलन के प्रथम शहीद 

सुरेंद्रसाय का विद्रोह :-

स्थान सम्बलपुर 
नेता सुरेंद्र साय (सम्बलपुर के जमींदार )
सहयोगी वीरनारायण सिंह का पुत्र गोविन्द सिंह 
कारण 
  • उत्तराधिकारी के लिए 
  • 31 अक्टूबर, 1857 को जेल से फरार 
पुनः गिरफ़्तार 
  • 23 जनवरी, 1864 
  • असीरगढ़ के किले में कैद कर रखा गया, जहाँ मृत्युपर्यंत  यातनाएं दी गयी।  
मृत्यु 1884 
विशेष 
  • तत्कालीन ज्यूडिशियल कमिश्नर कैंपवेल ने इसका पक्ष लिया था। 
  • छत्तीसगढ़ स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम शहीद 

उदयपुर का विद्रोह (1858)-

  • उदयपुर के राजकुमारों द्वारा 
  • कुछ समय के लिए इन्होंने अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। 
  • 1859 में गिरफ़्तार कर कालापानी की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया।

 हनुमान सिंह का विद्रोह (सैन्य विद्रोह)-

  • इस विद्रोह का नेतृत्व हनुमान सिंह ने किया था। 
  • हनुमान सिंह दुर्ग के बैंसवारा के राजपूत थे और रायपुर बटालियन में मैग्ज़ीन लश्कर के पद पर थे। 
  • हनुमान सिंह ने अपने 17 सहयोगियों के साथ मिलकर मेजर सीड़वेल की हत्या कर दी, 18 जनवरी, 1858 को सभी को गिरफ्तार किया गया। हनुमान सिंह फरार हो गए। इनके साथियों को 22 जनवरी 1858 को फाँसी दे दिया गयी। 
  • हनुमान सिंह को छत्तीसगढ़ का मंगल पाण्डे कहा जाता है। 

प्रमुख जनजातीय  विद्रोह -

हल्बा विद्रोह (1774-79 )-

  • शासक - अजमेर सिंह 
  • नेतृत्व - अजमेर सिंह 
  • प्रारंभ - 1774 (डोंगर से)
  • विपक्षी - दरियाव देव (मुख्य)
  • विद्रोह का पतन -1777 में अजमेर सिंह की मृत्यु के बाद हल्बा सेनाओं की हत्या। 

परकोट विद्रोह -

  • शासक - महिपाल देव 
  • नेतृत्व - गेंदसिंह (परकोट के जमींदार)
  • क्षेत्र - अबूझमाड़ 
  • कारण - अंग्रेजों और मराठों के प्रति असंतोष 
  • उद्देश्य - अबूझमाड़ क्षेत्र को शोषण से मुक्ति दिलाना। 
  • प्रतीक - धावड़ा वृक्ष की टहनी
  • दमन - कैप्टन पेबे द्वारा 
  • परिणाम - असफल 
  • 20 जनवरी 1825 को गेंदसिंह को फाँसी दे दी गई। 

मेरिया विद्रोह (1842 -63 )-

  • शासक - भूपालदेव 
  • नेतृत्व - हिड़मा मांझी 
  • कारण - दंतेश्वरी देवी मंदिर में नरबलि प्रथा को समाप्त करने के विरुद्ध 
  • दमन - कर्नल कैम्पबेल द्वारा 
  • मैक्फर्सन के अनुसार 'ताड़ीपन्नू ' या 'मतिदेव' की पूजा में प्रमुख संस्कार नरबलि है। 
  • नरबलि के विभिन्न बाध्य लोगों को 'मेरिया' कहा जाता है।

कोई विद्रोह (1859)-

  • शासक - भैरमदेव 
  • नेतृत्व - कोई जनजातीय द्वारा 
  • प्रमुख नेता - नांगुल दोर्ला 
  • कारण - साल वृक्षों की कटाई के विरुद्ध 
  • नारा - 'एक साल वृक्ष , एक सिर बराबर '
  • विशेष - पहला विद्रोह जिसमें अंग्रेजों की हार हुई। 

भूमकाल विद्रोह (1910) -

  • शासक - रुद्रप्रताप देव 
  • प्रणेता - गुण्डाधूर 
  • प्रारंभ - 01 फ़रवरी, 1910 
  • कारण -
  1. बस्तर अंचल में अंग्रेजों का शासन करना। 
  2. बैजनाथ पण्डा को दीवान बनाना। 
  3. लाल कालेन्द्र सिंह , राजमाता सुवर्णकुवर की उपेक्षा करना। 
  • प्रतिक - 'लाल मिर्च व आम की टहनी '
  • सोनू मांझी ने गुण्डाधुर को पकड़ने में अग्रेजों का साथ दिया। 
  • समाप्ति - 29 मार्च 1910 (गुण्डाधुर फ़रार )