
छिंदकनाग वंश -
- संस्थापक- नृपतिभूषण
- राजधानी - चक्रकोट (भ्रमरकोट ) या चित्रकोट
- छिंदकनाग वंशी राजा 'भोगवतीपुरेश्वर' की उपाधि धारण करते थे।
नृपतिभूषण -
- एर्राकोट से प्राप्त अभिलेख में इसे इस वंश का संस्थापक बताया गया है।
- जिसमें शक सवत 945 अंकित है। अर्थात 1023 ए.डी.
- इसके सामंत चन्द्रादित्य ने बारसूर में तालाब और शिव मंदिर बनवाया। (बारसूर शिलालेख- 1060 ए डी )
- इसके काल के विषय में प्राप्त जयपुर के समीप के ताम्रपत्र में नरबलि के लिखित साक्ष्य प्राप्त हुए है।
- धारावर्ष का पुत्र।
- जाजल्यदेव प्रथम से पराजित हुआ।
- 1109 ई. तेलगु शिलालेख (नारायणपाल )
- गुण्डमहादेवी इसकी माता थी।
- इसकी पत्नी गंगमहादेवी का शिलालेख बारसूर से प्राप्त हुआ है
- मणिकेश्वर देवी (दंतेश्वरी देवी ) का भक्त था।
- अंतिम शासक
- 1324 ई. तक शासन किया। काकतीय शासक अन्नमदेव ने पराजित किया।
- हरिशचन्द्र देव की बेटी चमेली देवी ने अन्नमदेव से कड़ा मुकाबला किया था , जोकि 'चक्रकोट की लोककथा ' में आज भी जीवित है।
- इस वंश का अंतिम शिलालेख टेमरा से प्राप्त हुआ है, जिसे सती स्मारक अभिलेख भी कहा जाता है , जिसमें हरिशचंद्र का वर्णन है।
काकतीय वंश -
- काल - 1324 - 1961 ई.
- संस्थापक - अन्नमदेव
- राजधानी - मंधोता
अन्नमदेव
- बस्तर में काकतीय वंश का संस्थापक।
- दंतेश्वरी देवी मंदिर का निर्माण करवाया।
- चंदेल राजकुमारी सोनकुँवर से विवाह किया।
- लोक गीतों में इन्हे 'चालाकी बंस ' राजा कहा गया है।
- चक्रकोट से राजधानी मंधोता ले गया।
- उड़ीसा के इतिहास में भी वर्णन है।
- इसकी पत्नी मेघावती आखेट विद्या में निपुण थी।
- मेघावती की स्मृति में मेघी साड़ी आज भी बस्तर में प्रचलित है।
- मंधोता से राजधानी स्थानांतरित कर बस्तर को राजधानी बनाया।
- बस्तर का दशहरा , गोंचा पर्व , बस्तर की रथयात्रा प्रारंभ करवाया।
- ओड़िशा के राजा ने 'रथपति' की उपाधि दी।
- नरसिंह देव बाद अत्यंत प्रतापी राजा।
- इसी के समय गोलकुण्डा के कुलीकुतुब शाह की सेना , बस्तर की सेना से पराजित हुई थी।
- गोलकुण्डा के अब्दुल्ला कुतुब शाह द्वारा अनेक असफल आक्रमण किया गया।
- अपने शासनकाल में राजपुर दुर्ग बनवाया।
- बस्तर पुराणों 'रक्षपाल देव' नाम वर्णित।
- 'प्रौढ़ प्रताप चक्रवर्ती ' उपाधि धारण था।
- मणिकेश्वरी देवी (दंतेश्वरी देवी ) के उपासक थे।
- ये चंदेल वंश थे तथा
- इसके शासनकाल में रतनपुर राज्य भोंसलो के अधीन आया।
- बस्तर में भोंसला सेनापति नीलूपंत ने प्रथम बार आक्रमण किया तथा असफल हुआ।
- परिणामस्वरूप 1770 में राजधानी बस्तर से जगदलपुर स्थानांतरित किया।
- बस्तर में बंजारों द्वारा वस्तु - विनिमय व्यापार प्रारंभ वस्तु - गुड़ , नमक , आदि।
- क्रांति का मसीहा।
- दरियाव देव व अजमेर सिंह के मध्य युद्ध तथा दरियाव देव की हार।
- इसके समय 1777ई. में कंपनी के प्रमुख जॉनसन व जैपुर की सेना पूर्व से तथा भोंसलों के अधीन नागपुर की सेना उत्तर से आक्रमण किया परिणामस्वरूप अजमेर सिंह पराजित।
- अजमेर सिंह के विरुद्ध षड्यंत्र कर मराठों की सहायता किया।
- दरियाव देव ने कोटपाड़ की संधि की , जिसके परिणामस्वरूप बस्तर नागपुर रियासत के अंतर्गत रतनपुर के अधीन आ गया।
- मराठों की अधीनता स्वीकार किया।
- प्रतिवर्ष मराठों को 59000 टकोरी देना स्वीकार किया।
- इसी के समय बस्तर छत्तीसगढ़ का अंग बना।
- 1795 ई. कैप्टन ब्लंट पहले अंग्रेज यात्री थे। जिन्होंने बस्तर के सीमावर्ती क्षेत्रों की यात्रा की। बस्तर में प्रवेश नहीं कर पाए , किन्तु कांकेर की यात्रा की।
- यह दरियाव देव का ज्येष्ठ पुत्र था।
- इसने भोसलों को टकोरी देना बंद कर दिया।
- जिसके कारण ब्योंकजी भोंसले के सेनापति रामचंद्र बाघ के नेतृत्व में बस्तर पर आक्रमण किया गया।
- महिपाल देव की हार के पश्चात् 1830 में सिहावा परगना मराठों को देना पड़ा।
- अंग्रेजों के अप्रत्क्षय शासन में बस्तर का पहला शासक था।
- इसके शासनकाल में परलकोट का विद्रोह हुआ था।
- दलगंजन सिंह इसका सौतेला भाई था, जिसे तारापुर परगना का जमींदार बनाया गया।
- इसके शासनकाल में मेरिया विद्रोह और तारापुर विद्रोह हुआ था।
- अंग्रेजों के अधीन प्रथम शासक था।
- 1857 में छत्तीसगढ़ संभाग का डिप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट प्रथम यूरोपीय था , जो बस्तर आया था।
- छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोहिणी थी।
- रुद्रप्रताप पुस्तकालय की स्थापना किया।
- जगदलपुर को चौराहों का शहर बनाया एवं सडकों का निर्माण करवाया।
- यूरोपीय युद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने के कारण 'सेंट ऑफ़ जेरूसेलम ' की उपाधि दी गई।
- 1910 का 'भूमकाल विद्रोह' इसी के शासनकाल में हुआ था।
- इसके शासनकाल में घैटीपोनी की प्रथा प्रचलित थी , जो स्त्री विक्रम से संबंधित थी।
- छत्तीसगढ़ की प्रथम व एकमात्र महिला शासिका थी।
- अंतिम काकतीय शासक था।
- 1966 के गोलीकांड में मृत्यु
- कम उम्र के प्रशिद्ध विधायक
- 1948 में बस्तर रियासत का भारत संघ में विलय हो गया।