मानव जाति का ऐसा समूह जो भूमि पर सबसे पहले आये और पर्वर्तीय एवं वन क्षेत्रों में निवास करने लगे। प्राचीनतम होने के कारन इन्हे आदिवासी कहा गया , दुर्गम स्थानों में निवास करने और सभ्य समाज से दुरी के कारण ये समूह विकास की धारा से दूर रहा। लेकिन आज भी अपने विशिष्ट जीवनशैली,परम्परागत संस्कृति और सुरक्षात्मक संगठन को बनाये रखने में सफल हैं।
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति -
संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार "राष्ट्रपति " किसी राज्य या संघ क्षेत्र के संबंध में जहाँ वह राज्य है , वहाँ उसके राज्यपाल के परामर्श से लोकअधिसूचना द्वारा , किसी जनजाति या जनजाति समुदाय अथवा जनजाति समुदाय के किसी भाग अथवा उनके समूह को "अनुसूचित जनजाति" घोषित कर सकता है।
छत्तीसगढ़ की विशेष पिछड़ी जनजातियाँ -
भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति द्वारा छत्तीसगढ़ की 5 जनजातियों तथा राज्य सरकार द्वारा 2 जनजातियों (कुल 07 ) को विशेष पिछड़ी जनजाति के अंतर्गत शामिल किया जाता है।
भारत सरकार द्वारा - अबुझमाड़िया , बैगा ,विरहोर ,पहाड़ी कोरवा ,कमार
राज्य सरकार द्वारा - पंडो , भुंजिया
1) अबुझमाड़िया -
नामकरण -
विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया का नाम अबूझमाड़ क्षेत्र में निवास करने से पड़ा।
अबूझमाड़ शब्द अबूझ +माड़ शब्द से मिलकर बना है , अबूझ अर्थात बुझा नहीं जा सकता तथा माड़िया शब्द की व्युत्पत्ति गोंड शब्द "माड़ " से हुई है जिसका अर्थ जंगल होता है।
अबुझमाड़िया का अर्थ अज्ञात भी होता है तथा यहाँ के निवासी स्वयं को मेटाभूम (पर्वतीय भूमि ) एवं हिलमाड़िया (पहाड़ी जंगल) भी कहते है।
संकेन्द्रण -
बस्तर संभाग के अभुझमाड़ क्षेत्र में निवास करते हैं।
भाषा -
अभुझमाड़िया माड़ी बोली बोलते हैं, जो द्रविड़ भाषा परिवार की गोंडी बोली का एक रूप है।
जीवनशैली -
अभुझमाड़िया लोग घुमक्कड़ प्रवृति के होते है।
ये अपना गृह स्वयं बनाते है , जो लकड़ी ,मिट्टी एवं घास -फूस का बना होता है।
इसके घर में परछी (बरामदा ), अगहा (बैठक ), लोनू; (स्टोर), आँगड़ी (रसोई ) तथा बाड़ी होता है।
लोनू में इनके कुल देवता का निवास होता है तथा इसमें खिड़की एवं रोशनदान नहीं होता है।
ये सामाजिक समागम हेतु जंगल में एक झोपड़ी बनाकर रहते है ,जिसे 'सिरोही / सिहरी' कहा जाता है।
आर्थिक -
अबुझमाड़िया आज भी स्थानांतरित कृषि करते हैं जिसे 'पेद्दा' कहा जाता है। इनके कृषि स्थल को कघई कहते है।
पहाड़ी एवं दुर्गम क्षेत्र में निवास होने के कारण वनोपज संग्रह तथा शिकार करना इनके जीवन यापन का प्रमुख साधन है।
तुम्बा (लौकी ) का इनके जीवन में विशेष महत्व है।
सामाजिक स्थिति -
अबुझमाड़िया पितृसत्तात्मक होते हैं और ये विभिन्न गोत्रों में बंटे होते है।
इस जनजाति के क्षेत्र परगनों में बटा होता है। इसके मुखिया को 'परगना मांझी ' कहते हैं। जो विवाह एवं झगडों का निपटारा करते हैं।
बस्तर के मैदानी क्षेत्र में रहने वाले 'दण्डामी माड़िया ' या 'बायसन हॉर्न माड़िया ' के नाम से जाने जाते हैं।
अबुझमाड़िया के घोटुल को 'कोसी घोटुल ' कहा जाता है।
विवाह पद्धति -
वधु बारात लेकर वर के घर जाती है , जहां बुजुर्ग के द्वारा विवाह सम्पन्न होता है।
इनके समुदाय में बिघेर (घर से भाग कर विवाह, ओडियत्ता (घर में घुसकर जबरदस्ती विवाह करना ), चूड़ी पहनाना (विधवा या परित्यक्ता का पुनर्विवाह ) आदि विवाह प्रचलित है।
धार्मिक स्थिति -
'भूमिमाता' इनकी प्रमुख देवी है तथा घोटुल के अंदर 'तोलूरमन्ते देव' की पूजा करते हैं।
'अदृश्य शक्ति' पर आस्था रखते है तथा शारीरिक कष्ट होने पर ओझा से सहयता लेते हैं।
2) बैगा -
उत्पत्ति -
हीरालाल और रसेल ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि भगवान ने सर्वप्रथम नंगा बैगा और नंगा बैगीन को बनाया जो पृथ्वी पर प्रथम मानव थे। इनके दो पुत्र व दो पुत्री हुए ,दोनों पुत्रो ने अपनी -अपनी बहनों से विवाह कर लिया। पहली जोड़ी से बैगा और दूसरी जोड़ी से गोंड की उत्पत्ति हुई।
संकेन्द्रण -
बैगा मुख्यतः छत्तीसगढ़ में कवर्धा , राजनाँदगाँव , मुंगेली ,बिलासपुर तथा कोरिया जिलों में निवास करती है।
आर्थिक जीवन -
इस जनजाति का मुख्य व्यवसाय झूम कृषि है जिसे 'बेवार' कहते है। इनका मानना है कि खेती में हल चलने से धरती माता को कष्ट होता है इसलिए झूम खेती करते है।
यह जनजाति गोंडों के पुजारी के रूप में कार्य करते है। वनोषधि एकत्रित करना इसका प्रमुख कार्य है।
सामाजिक स्थिति -
बैगा समाज पितृसत्तात्मक होते हैं तथा स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक होती है।
महिलाओं का वस्त्र कपची तथा इनका प्रिय आभूषण गोदना होता है। इसलिए इन्हें गोदना प्रिय जनजाति कहते है।
इस जनजाति में विधवा विवाह , गोत्र अंतर विवाह मान्य है तथा 'पैठुल विवाह'प्रचलित है।
बिंझवार ,रैमेना ,बादमैना ,राईल ,भरौतिया, नरौतिया, कोड़वन,तथा कुड़ी बैगा की उपजातियाँ है।
करमा इनका प्रमुख नृत्य है तथा इस जनजाति में बिलमा ,सैला ,परधौनी,फाग नृत्य भी प्रचलित है।
धार्मिक स्थिति -
बैगा का प्रमुख देवता 'बूढ़ादेव'हैं। इसका मान्यता है कि बूढ़ादेव सालवृक्ष पर निवास करते हैं।
गांव की रक्षा के लिए ठाकुरदेव तथा बीमारी से रक्षा के लिए दुल्हादेव की पूजा करते है।
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