सिरपुर के पाण्डु / सोम वंश -
राजधानी - श्रीपुर (सिरपुर )
- इसकी दो शाखाएँ थीं -
- मैकल श्रेणी में इस राजवंश को पाण्डु वंश कहा जाता था।
- दक्षिण कोशल में इस राजवंश को सोम वंश कहा जाता था।
- दो भिन्न लिपियों का प्रयोग -
- ताम्रपत्रों में - पेटिका शीर्ष लिपि
- शिलालेखों - कीलाक्षर लिपि
शासक विशेष -
- उदयन - कालिंजर के शिलालेख अनुसार इस वंश का आदिपुरूष
इन्द्रबल -
- उदयन का पुत्र
- शरभपुरीय वंश शासक सुदेवराज का सामंत था।
- इसने शरभपुरियों को पदच्युत कर पाण्डु वंश की नींव रखा।
- इन्द्रबल के चार पुत्रों में से एक
- इन्द्रबल का उत्तरधिकारी
- शेष तीनों भाइयों को मण्डलाधिपति के रूप में स्थापित किया।
- उपाधि -'सकल कोषलधिपति '
- नन्नराज का पुत्र एवं उत्तराधिकारी
- इसके काल को पाण्डु वंश का उत्कर्ष काल माना जा है।
- राजिम व बालोद में इसके ताम्रपत्र प्राप्त हुए।
- उपाधि - 'कोशलमण्डलाधिपति '
- इसका ताम्रपत्र अड़भार से प्राप्त हुआ।
- यह निः संतान था , इसके बाद तीवरदेव का भाई चद्रगुप्त शासक बना।
- नन्नदेव का चाचा
- सिरपुर अभिलेख में उल्लेख
- चंद्रगुत का पुत्र एवं उत्तराधिकारी
- उपाधि - 'प्राक- परमेश्वर' एवं 'त्रिकलिंगाधिपति '
- विवाह - मगध के मौखरि राजा सूर्यवर्मा की पुत्री वासटादेवी से।
- हर्षदेव की स्मृति में ही रानी वासटादेवी ने सिरपुर में लक्ष्मण मंदिर का निर्माण कार्य प्रारंभ कराया। (उत्तरगुप्त वास्तुकला का श्रेष्ठ उदाहरण )
- नेपाल नरेश जयदेव के शिलालेख में इसके नाम का वर्णन है।
- राजधानी - सिरपुर
- समकालीन शासक - हर्षवर्धन , पुलकेशिन द्वितीय , नरसिंहवर्मन प्रथम
- इसके शासनकाल को दक्षिण कोसल अथवा छत्तीसगढ़ के इतिहास का स्वर्णकाल कहा जाता है।
- सिरपुर -लक्ष्मण मंदिर का निर्माण कार्य पूरा किया।
- 639ई. इसी के समय चीनी यात्री व्हेनसांग छत्तीसगढ़ की यात्रा पर आया था।
- व्हेनसांग ने अपनी रचना 'सी -यू -की ' में छत्तीसगढ़ को 'किया -स -लो ' नाम से उल्लेख किया था।
- बालार्जुन शैव धर्मावलम्बी था।
- सिरपुर इस समय बौद्ध धर्म का केंद्र था।
- पुलकेशिन द्वितीय का अधीनता स्वीकार किया था। (रविकीर्ति कृत 'एहोल प्रशस्ति ' में वर्णन )
- महाशिवगुप्त के 27 ताम्रपत्र सिरपुर से प्राप्त हुए। (सर्वप्रथम अध्ययन - डॉ. विष्णुसिंह ठाकुर व रमेन्द्रनाथ मिश्र )
मैकल के पाण्डव वंश -
- राजधानी - अमरकंटक
- शासक -
- जयबल
- वत्सबल
- नागबल (महाराज की राजधानी )
- भरतबल - बम्हनी ताम्रपत्र के अनुसार इसने शरभपुरीय शासक नरेंद्र की बहन लोकप्रकाशा इसकी पत्नी थी।
- शुरबल - मल्हार से ताम्रपत्र मिला है।
ओड़िशा के सोम वंश -
- संस्थापक -शिवगुप्त
- भाषा - संस्कृत
महाभवगुप्त जन्मेजय -
- 'कौशलेंद्र ' और 'त्रिकलिंगाधिपति ' की उपाधि
- इसने कोशल , कलिंग व उत्कल तीनों जगह पर शासन किया।
- इसे 'धर्मकंदर्प ' तथा 'स्वभाव तुंग ' के नाम से भी जाना जाता था।
बाण वंश -
- राजधानी - पाली
- संस्थापक - महामण्डलेश्वर मल्लदेव
- इसका साम्राज्य उत्तर छत्तीसगढ़ में था।
- पाली के शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
- बाण वंश शासकों ने दक्षिण कोशल के सोमवंशी शासकों को बिलासपुर क्षेत्र से हटाया था ।
- कल्चुरि (त्रिपुरी ) शंकरगण द्वितीय मुग्धतुंग द्वारा बाण वंश पराजित हुआ।
पर्वतद्वारक वंश -
इस वंश के केवल दो शासक हुए -
- सोमन्नराज
- तुष्टिकर
- इसने अपनी माता कौस्तुभेखरी देवी के स्वास्थ्य हेतु देभोक (देवभोग ) का दान किया था।
- यह वंश रायपुर के दक्षिणी भाग तथा ओड़िशा के कालाहांडी के आसपास के क्षेत्र में शासन किया था।
- तुष्टिकर के तेरासिंघा ताम्रपत्र में तारभ्रमक दान देने का उल्लेख है।
- ये मूलतः कालाहांडी के पर्थला से थे।
- ये स्तंभश्वरी देवी के उपासक थे।