छत्तीसगढ़ में कल्चुरी वंश / Kalchuri dynasty in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में कल्चुरि वंश / Kalchuri dynasty in Chhattisgarh -
- कल्चुरि वंश भारत में 500-1740 तक कहीं न कहीं किसी ना किसी क्षेत्र में शासन किया था।
- यह वंश सबसे लम्बे समय तक भारत में शासन किया था।
- 'पृथ्वीराज रासो ' में इसका वर्णन चन्दरबरदायी ने किया है।
- राजधानियाँ - कालिंजर , प्रयाग , काशी , त्रिपुरी , तुम्माण , रतनपुर , खल्लारी , रायपुर , महिष्मती व छुरी-कोसगई था।
- छत्तीसगढ़ का कल्चुरि वंश त्रिपुरी (जबलपुर ) के कल्चुरियों का ही अंश था।
- त्रिपुरी में कल्चुरि वंश का संस्थापक वामराजदेव था।
- कोकल्ल देव ने स्थायी रूप से शासन स्थापित किया था।
कोकल्ल देव के १८ बेटों में से एक शंकरगण मुग्धतुंग ने बाण नरेश विक्रमादित्य को हराया था।छत्तीसगढ़ के कल्चुरी वंश के प्रमुख शासक -
1) कलिंगराज -
राजधानी - तुम्माण (कोरबा )कल्चुरि वंश का वास्तविक संस्थापक अलबरूनी द्वारा वर्णित शासक चैतुरगढ़ के महामाया मंदिर का निर्माण इसके पराक्रम का वर्णन पृथ्वीदेव प्रथम अमोदा ताम्रपत्र में है।
2) कमलराज (1020-1045 ई.)
- इसने त्रिपुरी के शासक गांगेदेव के उत्कल अभियान में सहायता किया था।
- 'सहिल्ल ' नामक पुरुष को उत्कल से वापस आते समय अपने साथ लाया जिसने साम्राज्य विस्तार किया।
3) राजा रत्नदेव (1045-1065ई.)
- कोमोमंडल प्रमुख वजूवर्मा की पुत्री नोनल्ला से विवाह
- 1050 ई. में रतनपुर नामक नया शहर बसाया और इसको अपनी राजधानी बनाया।
- माँ महामाया मंदिर का निर्माण करवाया।
- इसे तुम्माण पर छत्तीसगढ़ का चित्तौड़गढ़ कहे जाने वाले लाफागढ़ में स्थित महिषासुर मर्दिनी का प्रतिरूप माना गया है।
- इस समय रतनपुर का वैभव को देखकर कुबेरपुर की उपमा दी गई।
- इसने रतनपुर में अनेक मंदिर और तालाबों का निर्माण करवाया।
4) पृथ्वीदेव प्रथम (1065-1095ई. )
- उपाधि - 'सकल कोसलाधिपति '
- अमोदा ताम्रपत्र के अनुसार 21 हजार गाँवों का स्वामी होने का उल्लेख है।
- तुम्माण में पृथ्वीदेवेश्वर सिंह मंदिर
- तुम्माण में बंकेश्वर मंदिर में 'चतुंष्किका' का निर्माण करवाया था।
5) जाजल्लदेव प्रथम (1095 -1120 ई.)
- सेनापति जगतपाल (रतनपुर शिलालेख )
- छिंदकनाग वंशी शासक सोमेश्वर को हराया व कैद किया था।
- ओड़िशा के शासक भुजबल को हराया।
- अपने नाम की स्वर्ण और ताँबे के सिक्के प्रचलित किऐ।
- स्वर्ण सिक्को पर श्रीमद जाजल्लदेव तथा गजशार्दूल अंकित करवाया।
- त्रिपुरी की अधीनता को न प्रदर्शित करने के लिए पृथक से सिक्के जारी किए।
- गजासारदुल की उपाधि धारण किया बसाया।
- पाली के शिव मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
6) रत्नदेव द्वितीय (1120 -1135ई.)
- गंग वंशीय शासक अंनतवर्मन चोडगंग को शिवरीनारायण के समीप युद्ध में पराजित किया।
- इसने त्रिपुरी के कल्चुरियों की अधीनता को अस्वीकार किया।
- 'त्रिकलिंगाधिपति' कहलाने की नींव रखी।
- सोने व चाँदी के सिक्के जारी किए।
7) पृथ्वीदेव द्वितीय (1135-1165 ई.)
- कल्चुरियों में प्राप्त अभिलेखों में सर्वाधिक अभिलेख इन्ही का है।
- सरहरागढ़ (सारंगढ़ ), कांकरय (कांकेर), भ्रमरकोट (बारसूर) को जीता।
- चाँदी के सबसे छोटे सिक्के जारी किये।
- इसके सामंत जगतपाल द्वारा राजीव लोचन मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया।
8) जाजल्लदेव द्वितीय (1165-1168 ई.)
- त्रिपुरी के जयसिंह का असफल आक्रमण।
- यह अपेक्षाकृत अयोग्य शासक था।
9) जगददेव (1168-1178ई.)
- यह जाजल्यदेव का भाई था, जो गंग राजाओ के दमन हेतु निकला था। (खरौद अभिलेख )
10) रत्नदेव तृतीय (1178-1198ई.)
- इसका मंत्री ओड़िशा ब्राह्मण गंगाधर राव था।
- गंगाधर राव ने खरौद के लखनेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया और रतनपुर के एकवीरा देवी का मंदिर बनाया।
11) प्रतापमल्ल (1198-1222ई.)
- चक्राकार तथा षट्कोणाकार ताँबे के सिक्के चलाए।
- जिसमें सिंह व कटार की आकृति अंकित करायी।
- दो शक्तिशाली सामंत थे - जसराज तथा यशोराज (सहसपुर ताम्रपत्र )
12) बाहरेन्द्र साय (1480 -1525ई.)
- रतनपुर से इसके एक व छुरी कोसगई से दो अभिलेख मिलते है।
- राजधानी रतनपुर से छुरी-कोसगई ले गया।
- कोसगई में कोषागार बनवाया।
- कोसगई माता का मंदिर बनवाया।
13) कल्याण साय (1544-1581ई.)
- मुग़ल सम्राट अकबर का समकालीन था।
- जहाँगीर के दरबार में 8 वर्षों तक दिल्ली में रहे।
- इन्होंने राजस्व की जमाबंदी प्रणाली शुरू की थी।
- इसी जमाबंदी प्रणाली के आधार पर ब्रिटिश अधिकारी चिस्म ने छत्तीसगढ़ को 36 गढ़ों में बाँटा।
- अपने किले में 'श्री जगन्नाथ स्वामी ' के मंदिर की स्थापना की।
14) लक्ष्मण साह
- लक्ष्मण साय के द्वारा 1563ई. में देश्बही बनवाया गया। इसमें राज्य में लगने वाले करों का लेखा -जोखा होता था।
- इन्होंने तालुकदारों की सूची तैयार करवायी।
15) तखत सिंह
- शैव धर्मावलम्बी था एवं वैष्णव धर्म को संरक्षण प्रदान किया।
16) राजसिंह (1746ई.)
- प्रसिद्ध कवि गोपाल मिश्रा , राजसिंह के राजाश्रय में थे। जिनकी रचना 'खूब तमाशा'।
17) सरदार सिंह -
18) रघुनाथ सिंह
- 1741 ई. में भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने छत्तीसगढ़ में आक्रमण कर कल्चुरि वंश को समाप्त कर दिया।
19) मोहन सिंह
- मराठो के अधीन अंतिम कल्चुरि शासक