1. आर्कियन शैल समूह (आद्य महाकल्प ) -
सर्वप्रथम गर्म गलित पदार्थों के शीतलीकरण के द्वारा 'आर्कियन ' संरचना का विकास हुआ, जो ग्रेफाइट और नीस चट्टान से निर्मित प्राचीनतम संरचना है।
- यह पृथ्वी की प्राचीनतम एवं कठोर चट्टान है।
- लगभग सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में पाया जाता है।
- आर्कियन क्रम की चट्टानों में जीवाश्म रहित है।
- यह सबसे अधिक गहराई में पाया जाता है।
- यह चट्टान छत्तीसगढ़ में ग्रेफाइट,माइकाशिष्ट,नीस,कांग्लो मरेट के रूप में पाया जाता है।
2. धारवाड़ शैल समूह -
आर्कियन संरचना में भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन और अपरदन के द्वारा प्राप्त अवसादों के निक्षेपण से 'धारवाड़' संरचना का विकास हुआ जो जीवाश्म रहित कायांतरित अवसादी चट्टानी संरचना है।
- यह शैल समूह प्रदेश में छोटे-छोटे समूह में बिखरा हुआ है।
- धारवाड़ शैल समूह राज्य के मैदानी भाग कसडोल,पण्डरिया कबीरधाम तहसीलों में तथा दण्कारण्य के मोहेला (दक्षिण भाग ), भानुप्रतापपुर ,जगदलपुर और दंतेवाड़ा तहसीलों में पाये जाते है।
- बस्तर संभाग में पाया जाने वाला लौह अयस्क इसी चट्टान से प्राप्त होता है।
- इसकी संरचना में माईकाशिष्ट, स्लेट, तथा क़्वार्टजाइट की अधिकता है।
- छत्तीसगढ़ में धारवाड़ शैल तीन श्रेणी में पायी जाती हैं।
- चिल्फी घाटी श्रेणी
- सोनाखान श्रेणी
- दण्कारण्य प्रदेश का लौह अयस्क श्रेणी
3. कड़प्पा शैल -
आर्किंयन और धारवाड़ संरचना में अपरदन और भौतिक-रासायनिक परिवर्तन से प्राप्त अवसादों के निक्षेपण के द्वारा कड़प्पा संरचना का विकास हुआ, जिससें चूना पत्थर का सर्वाधिक भंडार है। इसमें भी जीवाश्म का अभाव पाया जाता है।
- कड़प्पा शैल समूह का सर्वाधिक विस्तार जगदलपुर, महासमुंद, भोपालपट्टनम, सरायपाली, नवागढ़, धमधा, दुर्ग, गुण्डरदेही, पाटन ,जाँजगीर - चांपा , बिल्हा , बिलासपुर , बलौदाबाज़ार ,तिल्दा ,कसडोल , बिलाईगढ़ में हुआ है।
- इसके अतिरिक्त बीजापुर तहसील के दक्षिण-पश्चिम किनारे, कोंडागांव, जगदलपुर, नारायणपुर की अभुझमाड़ पहाड़ी में सोनपुर तथा परलकोट के मध्य दो क्षेत्रों में हुआ है। इसकी दो श्रेणी है।
- रायपुर श्रेणी - दुर्ग , रायपुर ,एवं बिलासपुर
- चंद्रपुर श्रेणी - फिंगेश्वर, महासमुंद, रायपुर जिला के दक्षिण भाग में रायगढ़ तक विस्तृत है।
4. गोंडवाना शैल -
पैल्योज़ोइक युग में भू - संरचना क्रिया के द्वारा धँसाव की प्रक्रिया से संरचनात्मक बेसिन निर्माण हुआ , जिसमें अवसादों के निक्षेपण के द्वारा जीवाश्म युक्त अवसादी चट्टान के रूप में 'गोंडवाना संरचना ' का विकास हुआ। यह 'बिटुमिनस कोयला' के भंडार की दृष्टि के से भारत की महत्वपूर्ण संरचना है।
- इसमें जीवाश्म पाया जाता है।
- कोयला की प्राप्ति इसी चट्टान से होती है।
- इसे तीन भागों में बाँटा गया है -
1. ऊपरी गोंडवाना -
- यह बघेलखण्ड का पठार में पाया जाता है।
- यह जशपुर, महेंद्रगढ़, प्रतापपुर, बैकुंठपुर, सूरजपुर आदि तहसील के अंतर्गत है।
- इसमें कोयला पाया जाता है।
2. मध्य गोंडवाना -
- महानदी घाटी में पाया जाता है।
- इसे परसोरा तथा टिकी नाम से जाना जाता है।
- इनमें जीवाश्म पाया जाता है।
3. निचली गोंडवाना -
- इसे तलचर , बरकार एवं कामठी श्रेणी में रखा गया है।
- यह शैल समूह मनेंद्रगढ़, बैकुंठपुर, सरगुजा, अंबिकापुर, कटघोरा, कोरबा, खरसिया, धरमजयगढ़, तथा रामगढ़ तहसीलों में स्थित है।
- यह कोयला तथा बालू पत्थर निर्मित है।