छत्तीसगढ़ में अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है , जो पर्यटन के दृष्टि से महत्वपूर्ण है। उनके विवरण नीचे दिए गए हैं।
1 ) भोरमदेव मंदिर -
छत्तीसगढ़ का खजुराहो के नाम से प्रसिद्ध गोड़ राजाओं के देवता भोरमदेव के नाम पर फणिकनागवंशी शासक गोपालदेव ने भगवान शिव को समर्पित मैकल पर्वत श्रेणी के बीच में कबीरधाम जिले के चौरागाँव में कृत्रिमतापूर्वक नागर शैली में पूर्वमुखी भोरमदेव मंदिर 7-11 वीं शताब्दी में बनवाया था।
इस मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर 5 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। मंडप की लम्बाई 60 फुट और चौड़ाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खम्बे बहुत सुन्दर एवं कलात्मक है। मंदिर के सामने एक सुन्दर तालाब भी है।
2) मड़वा महल -
भोरमदेव मंदिर से लगभग 1 किमी की दूरी पर मड़वा महल स्थित है। मड़वा महल का निर्माण विवाह सम्पन्न कराने के लिए किया था।, इस कारण मड़वा महल को दूल्हादेव भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है इस स्थान पर फणिकनागवंशी राजा रामचंद्र देव ने हैहयवंशी राजकुमारी अम्बिकादेवी से विवाह किया था। इस महल का निर्माण नागवंशी राजा रामचंद्र ने 1349 ई. में किया था , जिसके गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है यह महल 16 स्तम्भों पर टिकी हुई है। यह मंदिर मुख्यतः दो भागों में बना है। इस मंदिर के ऊपर भोरमदेव मंदिर जैसा आकार बनाया गया है। गर्भगृह के प्रवेश द्वारा पाषाण से निर्मित है जिसका केंद्र स्तम्भ आजस -पास के तीन स्तम्भों से जुड़ा हुआ है। यह मंदिर प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही अपनी वास्तुकला की पृष्टभूमि के लिए अद्वितीय है।
3) मल्हार -
मल्हार बिलासपुर जिले में स्थित है। यह एक ऐतिहासिक महत्त्व का ग्राम है।भारत के 52 सिध्द शक्तिपीठों में से 51 शक्तिपीठ मल्हार में स्थापित है। यहाँ पर ताम्रकाल से लेकर मध्यकाल तक का क्रमबद्ध इतिहास प्राप्त हुआ है। खुदाई से मौर्यकाल की ईटों की दीवारें प्राप्त हुई है। यहाँ से रोमन सिक्कें प्राप्त हुई है। जिससे यह पता चलता है कि यहाँ विदेशी व्यापार होता था। इस स्थान की खुदाई से ईसा की दूसरी सदी की ब्राम्ही लिपि में लिखित मिट्टी की मुहरें प्राप्त हुई है , जिस पर 'गामस कोसलिया ' एवं वेद श्री लिखा है।