भारतीय संविधान की विकास यात्रा :-
संविधान क्या है ?
संविधान नियमों , उपनियमों का एक लिखित दस्तावेज होता है , जिसके अनुसार सरकार का संचालन किया जाता है। यह देश की राजनीतिक व्यवस्था का बुनियादी ढाँचा निर्धारण करता है। संविधान राज्य की विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका की स्थापना, उनकी शक्तियों
तथा दायित्वों का सीमांकन एवं जनता तथा राज्य के मध्य संबंधों का विनियमन करता है।
संविधान का महत्त्व -
1. संविधान यह सुनिश्चित करता है कि कानून कौन बनाएगा ?
2. समाज में शक्ति के मूल वितरण को स्पष्ट करता है।
3. समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी तथा सरकार का निर्माण कैसे होगा ,निर्धारण करता है।
4. यह समाज के आकांक्षाओं एवं लक्ष्यों को अभिव्यक्त करता है एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना हेतु उचित परिस्थितियों के निर्माण को सुनिश्चित करता है।
5. यह समाज को बुनियादी पहचान प्रदान करता है।
6. संविधान , राजव्यवस्था के तीन प्रमुख अंगों - कार्यपालिका ,विधायिका एवं न्यायपालिका की स्थापना करता है तथा उनकी शक्तियों एवं अधिकारी को परिभाषित करता है।
7. यह राज्य के अंगो के अधिकार को मर्यादित कर उन्हें निरंकुश एवं तानाशाह होने से रोकता है।
8. संविधान एक आइना है जिसमें उस देश के भूत , वर्तमान और भविष्य की झलक मिलती है।
ब्रिटिशों द्वारा समय -समय पर लाए गए अधिनियमों ने भारतीय सरकार और प्रशासन की विधिक रुपरेखा को तैयार किया है।
संवैधानिक विकास के चरण
1. नियामक अधिनियम,1773 (Regulating act, 1773 )-
8. संविधान एक आइना है जिसमें उस देश के भूत , वर्तमान और भविष्य की झलक मिलती है।
ब्रिटिशों द्वारा समय -समय पर लाए गए अधिनियमों ने भारतीय सरकार और प्रशासन की विधिक रुपरेखा को तैयार किया है।
संवैधानिक विकास के चरण
1. नियामक अधिनियम,1773 (Regulating act, 1773 )-
- इसके द्वारा भारत में कंपनी के प्रशासन पर ब्रिटिश संसदीय नियंत्रण की शुरुआत हुई।
- बम्बई और मद्रास प्रेसीडेंसी को कलकत्ता प्रेसिडेंसी के अधीन कर दिया गया।
- कलकत्ता प्रेसीडेंसी में गवर्नर जनरल व चार सदस्यों वाले परिषद के नियंत्रण में सरकार की स्थापना की गई।
- कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना 1174 ई. में की गई , जिसके अंतर्गत बंगाल , बिहार , ओडिशा शामिल थे। सर एलिजाह इम्पे को इसका प्रथम मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किये गया।
- भारत के सचिव की पूर्व अनुमति पर गवर्नर जनरल तथा उसकी 4 सदस्यों वाली परिषद को कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
- बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसीडेंसी का ' गवर्नर जनरल ' कहा जाने लगा। लार्ड वारेन हेस्टिंग्स प्रथम गवर्नर जनरल बने।
पिट्स इंडिया एक्ट, 1784 (Pits India Act, 1784 )
- ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री विलियम पिट के द्वारा प्रस्तुत किया गया था।
- इस अधिनियम के द्वारा 'निर्देशक मंडल ' ( कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स ) को कंपनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी गई , लेकिन राजनितिक मामलों के प्रबंधन के लिए 'नियंत्रण बोर्ड ' (बोर्ड ऑफ़ कंट्रोल ) नाम से नये निकाय का गठन किया गया।
- गवर्नर जनरल को परिषद की सदस्य संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गई। साथ ही , मद्रास तथा बंबई की सरकारों को पूरी तरह से बंगाल सरकार के अधीन कर दिया गया।
चार्टर अधिनियम ,1813 (Charter Act ,1813 )
- कंपनी के भारत के साथ व्यापार करने के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया। परन्तु चीन के साथ व्यापार और चाय के व्यापार पर यह एकाधिकार बरकरार रखा गया।
- कुछ सीमाओं के तहत भारत के साथ व्यापार करने हेतु सभी ब्रिटिशवासियों के लिये मुक्त व्यापार की अनुमति दे दी गई।
- ईसाई मिशनरियों को भारत में धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।
- भारत में शिक्षा के लिए प्रतिवर्ष 1 लाख रूपये खर्च करने का प्रावधान भी किया गया।
चार्टर अधिनियम , 1833 (Charter Act, 1833 )
- कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिये गए।
- अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से भारत पर केवल शासन करना रह गया।
- बंगाल के गवर्नर जनरल को 'भारत का गवर्नर जरनल ' कहा जाने लगा।भारत के गर्वनर को सभी नागरिक तथा सैन्य शक्तियाँ प्रदान की गई। भारत का प्रथम गवर्नर जनरल 'लार्ड विलियम बैंटिक ' बना।
- मद्रास एवं बंबई के गर्वनर को विधायिका शक्ति से वंचित कर दिया गया। भारत के गवर्नर जनरल को पुरे ब्रिटिश भारत में विधि बनाने का एकाधिकार प्रदान किया गया। इसके अंतर्गत पहले बनाये गए कानूनों को 'नियामक कानून ' कहा गया और नये कानून के तहत बने कानूनों को 'एक्ट या अधिनियम ' कहा गया।
- इससे पहले गवर्नर जनरल की कार्यकारणी में तीन सदस्य होते थे, किन्तु विधिक परामर्श हेतु गवर्नर जनरल परिषद में ' विधि सदस्य ' के रूप में चौथे सदस्य को शामिल किया गया।
- भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया व इस कार्य के लिए 'विधि आयोग ' का गठन किया गया। 'लार्ड मैकाले ' की अध्यक्षता में प्रथम विधि आयोग का गठन किया गया।
- सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया गया।
- कंपनी के प्रदेशों में रहने वाले किसी भी भारतीय को धर्म , जाति , वंश , रंग या जन्मस्थान के आधार पर कंपनी के किसी पद से , जिसके लिये वह योग्य हो , वंचित नहीं किया जायेगा। हालाकिं , कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स के विरोध के कारण यह प्रावधान लागू नहीं हो सका।
- भारत में दास प्रथा को गैर -कानूनी घोषित किया गया तथा गवर्नर जनरल को निर्देश दिया कि , भारत में दास को समाप्त करने के लिए आवश्यक कदम उठाये।
- भारत में ब्रिटिश राज के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम संकेत इस एक्ट में मिलते हैं।
चार्टर अधिनियम , 1853 (Charter Act, 1853)
- पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया गया।
- गवर्नर जनरल की परिषद् में 6 नये सदस्यों की वृद्धि की गई (विधायी कार्यों के लिए) , जिससे विधानपरिषद में कुल सदस्य संख्या बढ़कर 12 हो गई।
- 6 सदस्यों में बंगाल के मुख्य न्यायधीश , कलकत्ता उच्चतम न्यायलय का एक न्यायाधीश और बंगाल , मद्रास, बंबई,और आगरा प्रान्त के एक -एक प्रतिनिधि शामिल थे।
- कार्यकारिणी परिषद् के कानून सदस्य को पूर्ण सदस्य का दर्जा प्रदान किया गया।
- सम्पूर्ण भारत के लिए एक 'पृथक विधान परिषद्' की स्थापना की गई और इस परिषद् ने आगे चल कर 'लघु संसद' का रुप ग्रहण कर लिया।
- इसके निर्देशक मंडल के सदस्यों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी।
- इसके द्वारा भारतीय विधान परिषद् में सर्वप्रथम 'क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व' के सिध्दांत को प्रतिपादित किया गया।
- इस अधिनियम के द्वारा प्रमुख सहकारी सेवाओं में नामजदगी का सिध्दांत समाप्त कर, महत्त्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से भरने की व्यवस्था की गई और पहली बार सिविल सेवाओं में भारतीयों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।